नेलांग घाटी वर्णन | Nelong Valley Distance and Travel Guide from Dehradun in Hindi|
नेलांग, उत्तरकाशी जिले में स्थित एक पहाड़ी गाँव है जो स्थान उत्तरकाशी से लगभग 115 किलोमीटर की दूरी पर तथा समुद्र तल से लगभग 11000 फिट की ऊंचाई पर स्थित है। नेलांग घाटी के दृश्य तथा जलवायु काफी हद तक लद्दाख–स्पीति घाटी से मिलते जुलते हैं, इसी वजह से नेलांग घाटी को उत्तराखंड का लद्दाख कहा जाता है। यहाँ की सुन्दर घाटियां, लुभावने दृश्य, ऊँची-ऊँची पर्वत चोटियां तथा ताल पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र हैं। गंगोत्री धाम सड़क पर स्थित प्रसिद्ध पर्यटक स्थान हर्षिल से नेलांग की दूरी 40 किलोमीटर है। भैरव घाटी से नेलांग की दूरी लगभग 20 किलोमीटर है।
नेलांग घाटी चीन सीमा से लगी हुई है, इसलिए सामरिक दृष्टि से संवेदनशील होने के कारण इस क्षेत्र को इनर लाइन क्षेत्र घोषित किया गया है। साल 2015 से पहले तो नेलांग घाटी में पर्यटकों का प्रवेश बिल्कुल ही निषेध था लेकिन 2015 में 60 सालों के बाद घाटी को पर्यटकों के लिए खोल दिया गया है। सुरक्षा कारणों की वजह से विदेशी पर्यटकों का घाटी में प्रवेश अभी भी वर्जित है। आज नेलांग घाटी साहसिक गतिविधियों के शौक़ीन लोगों का प्रमुख स्थान है। यहां कदम-कदम पर भारतीय सेना की कड़ी चौकसी है और बिना अनुमति के पर्यटकों का नेलांग घाटी में प्रवेश करना वर्जित है। भारत-चीन की सीमा पर भारत की सुमला, मंडी, नीला पानी, त्रिपानी, पीडीए और जादूंग नाम की अंतिम चौकियां हैं।
नेलांग घाटी का इतिहास | History Of Nelong Valley in Hindi |
एक समय ऐसा भी था, जब उत्तरकाशी की यह नेलांग घाटी भारत तथा तिब्बत के व्यापारियों से भरी रहती थी। तिब्बत के व्यापारी(जिन्हे दोरजी कहा जाता था) ऊन, चमड़े से बने कपडे-जुते और नमक को लेकर सुमला, मंडी, नेलांग के सीढ़ीनुमा मार्ग से होते हुए उत्तरकाशी पहुंचते थे। पहाड़ी पर लकड़ी के बने इन सीढ़ीनुमा मार्गों को गर्तांगली कहा जाता था। उस समय उत्तरकाशी में हाट(प्रतिदिन सामानों का बाजार) लगा करती थी। यही कारण है कि उत्तरकाशी को बाड़ाहाट अर्थात बड़ा बाजार भी कहा जाता है। सामान बेचने के बाद दोरजी यहां से तेल, मसाले, दालें, गुड़, तंबाकू आदि वस्तुओं को लेकर लौटते थे।
इस व्यापार का गर्तांगली(सीढ़ीनुमा रास्ता) ही एकमात्र प्रमुख प्रमाण बचा है। 17वीं शताब्दी में पेशावर के पठानों ने समुद्रतल से 11 हजार फीट की ऊंचाई पर उत्तरकाशी जिले की नेलांग घाटी में हिमालय की खड़ी पहाड़ी को काटकर दुनिया का सबसे खतरनाक रास्ता तैयार किया था। पांच सौ मीटर लंबा लकड़ी से तैयार यह सीढ़ीनुमा मार्ग (गर्तांगली) भारत-तिब्बत व्यापार का साक्षी रहा है। सन् 1962 से पूर्व भारत-तिब्बत के व्यापारी याक, घोड़ा-खच्चर व भेड़-बकरियों पर सामान लादकर इसी रास्ते से आवागमन करते थे।
1962 के युद्ध के दौरान नेलांग और जाडुंग गाँवो को खाली करवा दिया गया और इस मार्ग पर आवाजाही बंद कर गई। खतरों से भरे ये मार्ग आम जनता के लिए भले ही बंद कर दिए गए थे मगर भारतीय सेना की आवाजाही जारी रही। घाटी के गाँवों को खाली करवा कर अन्य स्थानों जैसे हर्षिल-बगोरी, डुंडा आदि में बसाया गया। स्थानीय लोगों को वर्ष में एक बार धार्मिक क्रियाकलापों के लिए घाटी के गाँवों में जाने की इजाजत दी गई। भारत-चीन युद्ध के बाद लगभग दस वर्षों तक भारतीय सेना ने इस मार्ग का उपयोग किया। लगभग दस साल बाद 1975 में सेना ने भी इस रास्ते का इस्तेमाल बंद कर दिया था। उसके बाद लगभग चालीस साल से मार्ग का रख-रखाव न होने के कारण सीढि़यां क्षतिग्रस्त हो गई है और सीढि़यों के किनारे लगी सुरक्षा बाढ़ की लकड़ियां भी खराब हो चुकी हैं।
वर्ष 2017 में तत्कालीन जिलाधिकारी डॉ. आशीष श्रीवास्तव ने पर्यटन अधिकारी तथा गंगोत्री नेशनल पार्क के अधिकारियों के साथ मार्ग का निरीक्षण करके शासन से वित्तीय मदद मांगी और आखिरकार सरकारी तंत्र ने इसके इजाजत दे भी दी।
****Update August 2021
भारत-तिब्बत के बीच व्यापार की गवाह रही गर्तांग गली को पर्यटकों के लिए खोलने की तैयारी की जा रही है। उत्तरकाशी जिलाधिकारी मयूर दीक्षित ने गंगोत्री नेशनल पार्क के उप निदेशक और जिला पर्यटन विकास अधिकारी को पर्यटकों के लिए गर्तांग गली को खोलने के निर्देश दिए हैं। घाटी में प्रवेश के लिए पर्यटकों को सभी कोविड नियमों का पालन करते हुए भैरवघाटी चेकपोस्ट पर पंजीकरण करना होगा।
गर्तांग गली, अगस्त 2021
गर्तांग गली को 1962 युद्ध के बाद बंद कर दिया गया था। जिसके बाद लगभग 10 सालों तक मात्र भारतीय सेना ने ही इस रास्ते का इस्तेमाल किया था। तब से पूरी तरह जर्जर हो चुकी गर्तांग गली, लकड़ी के सीढ़ीनुमा ट्रेक का पुनर्निर्माण कार्य अब 2021 में पूरा हो चुका है।
गर्तांग गली, अगस्त 2021
आने वाले समय में पर्यटक भी यहां प्रवेश कर पाएंगे। लगभग 136 मीटर लंबे और 1.8 मीटर चौड़े सीढ़ीनुमा ट्रेक पर सुरक्षा की दृष्टि से एक बार में 10 से अधिक लोगों का जाना मना रहेगा, साथ ही झुंड बना कर और रैलिंग से बाहर झांकने पर भी रोक रहेगी।
नेलांग घाटी में प्रवेश की आवश्यक शर्तें | Things to keep in mind while Visiting Nelong Valley |
कुछ साल पहले तक नेलोंग घाटी में जाने के लिये गंगोत्री नेशनल पार्क के कार्यालय, एसपी कार्यालय, एसडीएम कार्यालय आदि से पास बनाना अति आवश्यक होता था लेकिन 2017 में कुछ बदलाव के बाद अब यात्री सभी कार्यालयों की अनुमति सिंगल विंडो सिस्टम से ऑनलाइन ले सकते हैं ।
गंगोत्री से लगभग 8 किलोमीटर पहले भैरवघाटी से नेलोंग घाटी के लिए मार्ग अलग हो जाता है। घाटी में पर्यटक हिम तेंदुआ, भूरा भालू, बारहसिंघा, बरड़, गुलदार आदि दुर्लभ वन्य जीवों का दीदार भी कर सकते हैं। राज्यवन विभाग की आवश्यक शर्तों के अनुसार घाटी में दुपहिया वाहनों का आवागमन वर्जित है। सिर्फ 6 गाड़ियों को घाटी में जाने की इजाजत है, जिनमे प्रत्येक गाडी में सिर्फ 4 व्यक्ति होने चाहिए।
***नियमों में समय के अनुसार बदलाव हो सकते हैं, कृपया आप आधिकारिक जानकारी लेकर ही प्रवेश करें।***
नेलांग वैली पहुंचने के लिए परमिट | Nelong Valley Online Permit |
उत्तरकाशी जिले के गंगोत्री और यमुनोत्री दोनों घाटियों में पर्यटन विभाग द्वारा चिन्हित 60 से ज्यादा पहाड़ी ट्रेक हैं। ट्रेकर्स की आसानी के लिए उत्तरकाशी पर्यटन विभाग द्वारा इन ट्रेक को 03 श्रेणियों में विभाजित किया गया है।
आसान- 3500 मीटर से नीचे
मध्यम- 3500 मीटर – 4000 मीटर
कठिन- 4000 मीटर से ऊपर
नेलांग वैली ट्रेक या उत्तरकाशी के अन्य किसी ट्रेक के ऑनलाइन परमिट के लिए आधिकारिक वेबसाइट पर जाएं।
कैसे पहुँचें नेलांग वैली? How To Reach Nelong Valley from Dehradun?
सड़क मार्ग द्वारा नेलांग वैली? How To Reach Nelong Valley from Dehradun by Road?
नेलांग घाटी पहुँचने के लिए सबसे पहले उत्तरकाशी स्थान पहुंचना होता है। राज्य की राजधानी देहरादून से स्थान उत्तरकाशी की न्यूनतम दूरी लगभग 145 किलोमीटर है जिसको तय करने में लगभग 5-6 घंटे का समय लगता है। देहरादून से मसूरी, चिन्यालीसौड़, उत्तरकाशी होते हुए भैरोंघाटी तक लगभग 250 किलोमीटर की दूरी तय करनी होती है। उत्तरकाशी से नेलांग गाँव की दूरी लगभग 120 किलोमीटर है जिसे तय करने में 4 -5 घंटे का समय लग जाता है।
ऋषिकेश से गंगोत्री हाईवे पर चंबा एवं उत्तरकाशी होते हुए भैरोंघाटी पहुंचा जा सकता है। यह लगभग 275 किलोमीटर का सफर है। देहरादून से मसूरी, चिन्यालीसौड़, उत्तरकाशी होते हुए भैरोंघाटी तक 250 किमी दूरी तय करनी होती है ।
हवाई मार्ग द्वारा नेलांग वैली? How To Reach Nelong Valley by air?
हवाई मार्ग द्वारा नेलांग घाटी पहुँचने के लिए निकटतम हवाई अड्डा देहरादून का जॉलीग्रांट हवाई अड्डा है जहाँ से भैंरोघाटी की मोटरमार्ग दूरी लगभग 250 किलोमीटर है।
रेल मार्ग द्वारा नेलांग वैली? How To Reach Nelong Valley by Train?
रेल मार्ग द्वारा नेलांग वैली पहुँचने के लिए सबसे नजदीक का रेलवे स्टेशन ऋषिकेश रेलवे स्टेशन है। ऋषिकेश से भैरों घाटी की सड़क मार्ग दूरी लगभग 275 किलोमीटर है।
नेलांग घाटी का मौसम और तापमान | Nelong Valley Weather And Temperature |
गर्मियों में नेलांग घाटी का तापमान(अप्रैल से जून तक) | Nelong Valley Temperature In Summer |
अधिकतम: लगभग 35℃
न्यूनतम: लगभग 10℃
मानसून में नेलांग घाटी का तापमान(जुलाई से सितंबर तक) | Nelong Valley Temperature In Monsoon |
अधिकतम: लगभग 25℃ न्यूनतम: लगभग 8-10 ℃
सर्दियों में नेलांग घाटी का तापमान(अक्टूबर से फरवरी तक) | Nelong Valley Temperature In Winter |
अधिकतम: लगभग 20℃ न्यूनतम: लगभग 0℃ और कम
नेलांग जाने का सबसे अच्छा समय | Best Time To Reach Nelong Valley from Dehradun |
नेलांग घाटी जाने का सबसे अच्छा समय मौसम के अनुसार मई, जून, सितम्बर, अक्टूबर, नवम्बर के महीने हुआ करते हैं। सर्दियों के मौसम में नेलांग पहुँचने की सड़के प्राय बर्फ से ढकी होती हैं। इसके साथ ही बरसात के मौसम में पहाड़ी सड़कें खतरनाक हो सकती हैं।
नेलांग घाटी में घूमने के लिए प्रमुख स्थान | Places To Visit Near Nelong Valley |
उत्तरकाशी से 90 किलोमीटर दूर स्थित भैरोघाटी से ही नेलांग घाटी का रास्ता है। भैरों घाटी से लगभग 27 किलोमीटर की दूरी पर नेलांग गाँव पड़ता है। नेलांग गाँव में आइटीबीपी और भारतीय सेना का कैंप है। नेलांग गाँव से लगभग 8 किलोमीटर की दूरी पर नागा जगह है। नागा से लगभग 15 किलोमीटर दूर जादूंग गाँव तथा नीलापानी है। जबकि नागा से एक मार्ग सोनम, त्रिपानी, पीडीए, सुमला व मेंड़ी को भी जाता है।
1: गर्तांगली | Gartang Gali Uttarkashi near Nelong Valley |
17वीं शताब्दी में पेशावर के पठानों ने समुद्रतल से 11 हजार फीट की ऊंचाई पर नेलांग घाटी में हिमालय की खड़ी पहाड़ी को काटकर यह खतरनाक रास्ता तैयार किया था। लगभग 500 मीटर लंबा लकड़ी से तैयार यह सीढ़ीनुमा मार्ग (गर्तांगली) भारत-तिब्बत व्यापार का प्रमाण रहा है। सन् 1962 से पूर्व भारत-तिब्बत के व्यापारी याक, घोड़ा-खच्चर व भेड़-बकरियों पर सामान लादकर इसी रास्ते से आवागमन करते थे। भारत-चीन युद्ध के बाद दस वर्षों तक सेना ने भी इस मार्ग का उपयोग किया।
2: मैमोरियल पॉइंट मेमोरियल पॉइंट के पीछे की कहानी काफी दिलचस्प है। दरअसल इन स्थानों पर सैनिकों का ड्यूटी करना अपने आप में एक बहुत बड़ी बात है। यहाँ सर्दियों में भारी बर्फ़बारी के चलते सैनिकों को पीने के पानी की व्यवस्था करने में तक काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। सैनिक बर्फ को पिघला कर पानी का इंतजाम करते हैं। लगभग 2 दशक पुरानी यह घटना भारत-चीन एफडी रेजिमेंट के तीन सैनिकों की है। 6 अप्रैल 1994 को 64 एफडी रेजीमेंट के सैनिक हवलदार झूम प्रसाद गुरंग, नायक सुरेंद्र और दिन बहादुर गश्त कर रहे थे। जो पीने के पानी की तलाश में भटकते हुए ग्लेशियर के नीचे दबकर शहीद हो गए थे। आज भी सीमा पर आगे बढ़ने से पहले शहीद सैनिकों के स्मारक मेमोरियल पॉइंट पर पानी से भरी बोतलें रखी जाती हैं। इस जगह पर गश्त लगाने वाले कई जवानों का कहना है कि शहीद सैनिक आज भी उनके सपनों में आ कर पानी मांगते हैं।
भले ही कई लोग इस बात को अंधविश्वास माने लेकिन इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि किस तरह सेना के जवान विपरीत परिस्थितियों में भी अपनी ड्यूटी निभाते हैं। 3: भैरव मंदिर, भैरों घाटी
4: हर्षिल
हर्षिल, भैरों घाटी से पहले पड़ने वाला एक प्रमुख पर्यटक स्थान है। यहाँ भारतीय सेना का बेस कैंप भी है। हर्षिल घाटी सेब के बगीचों के लिए काफी प्रसिद्ध है।
हर्षिल से लगभग 4 किलोमीटर बाद तथा भैरों घाटी से पहले पड़ने वाला मुखवा गाँव, माँ गंगा का मायका है। शीतकालीन सत्र में माँ गंगा की डोली गंगोत्री मंदिर के कपाट बंद रहने पर मुखवा गाँव के मंदिर में ही रखी जाती है। 8: जादूँग गाँव और जनक ताल
पर्यटकों को जनकताल जाने के लिए प्रशासन से अनुमति लेनी होगी क्योंकि यह इनर लाइन परमिट और गंगोत्री राष्ट्रीय उद्यान के अंतर्गत आता है।
****कृपया पर्यटक स्थानों पर गंदगी न फैलाएं। साथ ही स्थानीय लोगों की निजता का ध्यान रखें।****
गर्तनग गली लकड़ी के ब्रिज तक कैसे जा सकते हैं?
3km treck
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