असोज महीने का वर्णन | Asoj Month in Hindi |
असोज का महीना पहाड़ियों का सबसे ज्यादा व्यस्ततम महीना माना जाता है। असल में साल के इस महीने से खेतों में ज्यादा काम का सिलसिला शुरू हो जाता है। हिन्दू महीनों के अनुसार “असोज” के महीने को “आश्विन माह” कहा जाता है। हिन्दू धर्म में आश्विन माह को बहुत महत्व दिया गया है। लगभग सितम्बर आधे माह के बाद से असोज का महीना शुरू होता है। महीना शुरू होते ही गांवों के अधिकतर भारी कामों की शुरुआत हो जाती है।
दाल का बोझा बनाती पहाड़ी महिला |
असोज का महीना इतना व्यस्त होता है कि अधिकतम लोग सुबह के अंधेरे में ही काम के लिए निकल जाया करते हैं और शाम के अंधेरे तक ही घर पहुंच पाते हैं। ज्यादातर घरों में तो दिन के समय लोग भी नहीं हुआ करते क्योंकि सभी काम के लिए खेतों में होते हैं। यह सारा काम असोज के महीने के शुरू होने से महीने के खत्म होने के बाद तक भी चलता ही है। मतलब सितंबर आधे माह के बाद से शुरू होने वाला यह काम लगभग नवंबर माह तक चलता रहता है। नवंबर आधे माह के बाद ही पहाड़ी लोग अपने कामों से निपट पाते हैं।
पहाड़ों में असोज के महीने एक कहावत बोली जाती है, “असोज का काम, और असोज का घाम झेलना हर किसी के बस की बात नहीं”। घाम का मतलब सूरज की धूप होता है। कहावत का मतलब यह है कि असोज के महीने में होने वाले काम और दिन की कड़क धूप में यह काम करना बहुत ही कष्ट देता है। लेकिन एक सच्चा पहाड़ी इन कामों को पूरी लगन से करता है।
असोज के महीने में होने वाले काम | Usual Works In Asoj Month |
असोज के महीने में होने वाले काम और फसलें कुछ इस प्रकार हैं।
1: धान
असोज के महीने तक धान पक कर तैयार हो जाता है, जिसे काटकर बालियां अलग कर ली जाती हैं। इसके बाद खुद से या मशीन की सहायता से दानों को भी अलग किया जाता है। यह प्रक्रिया काफी मेहनत वाली होती है जिसमे काफी समय भी लग जाता है।
2: मंडुआ या कोदा
मंडुआ अथवा कोदा तैयार हो जाता है जिसे काटा जाता है और दाना अलग किया जाता है। इसके बाद दानों को सुखाकर पिसवा लिया जाता है जिससे मंडुआ का आटा तैयार हो जाता है। मंडुआ या रागी का आटा (जिसे ग्रामीण भाषा में कोदा कहा जाता है) के बहुत ही लाभकारी सेहतमंद फायदे हैं।
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3: मारसा या चौलाई
मारसा(चौलाई) निकालने का काम और बचे पौधे को खेतों से काटकर या उखाड़ने का काम भी इस ही समय किया जाता है। चौलाई का काफी धार्मिक महत्व है, पूजा या व्रत के दौरान इसके लड्डू का सेवन किया जाता है।
मारसा(चौलाई) का खेत |
4: कई तरह की दालों का काम
इस महीने बहुत सारी दालें पाक कर तैयार हो जाती हैं। दालें जैसे उडद(काली दाल), लोबिया(सुंठे), छीमी, राजमा, तोर, गहत, आदि असोज के महीने में पककर तैयार हो जाती हैं जिन्हें काटकर घर लाया जाता है और सुखाकर, कूटकर दाना-दाना अलग कर लिया जाता है। कूटने की प्रक्रिया हाथों से ही डंडे से पूरी होती है। ज्यादा मात्रा होने पर काफी लोग बैलों की मदद भी लेते हैं।
सूखने के लिए डाली हुई दाल जिसे सूखने के बाद कूटा जायेगा |
उड़द दाल या काली दाल |
गहत दाल या कोल्थ दाल |
तोर दाल |
लोबिया दाल या सुंठे की दाल |
5: तिल, भंगजीर, जख़्या, सोयाबीन(काला और सफेद) आदि भी इस ही महीने निकलते हैं।
तिल का पौधा काटकर सूखाने को डाला हुआ |
सोयाबीन या भट्ट |
पहाड़ों की सबसे अधिक पौष्टिक दालों में से एक भट्ट की दाल या सोयाबीन का काम भी असोज के महीने में ही होता है।
इन सभी दालों को निकलने का काम इतना आसान नहीं होता। दरअसल पहाड़ों में दाल निकलने के कामों को मशीनों से नहीं किया जाता बल्कि आज भी दाल निकालने के कामों को पुराने पारम्परिक तरीकों से किया जाता है, जिसमें काफी मेहनत लगती है। दाल के पौधे को काटकर घर तक लाना, उसके बाद कड़ी धूप में पौधे को कुछ दिन सूखाना। सूखने पर डंडे से पौधों की कुटाई करके दाने को अलग से छान लिया जाता है।
6: घास काटने का काम
इस समय घास भी सूख जाता है जिसे काट कर एक विशेष तरीके से लोग अपने-अपने पेड़ों पर सुरक्षित तरीके से सूखने के लिए रख लेते हैं। यह पशुओं के लिए चारे के काम आता है।
यह सारे काम लगभग 1-2 महीने के अंतराल में एक साथ करने होते हैं। क्योंकि गांवो में लोगों के खेत भी काफी होते हैं तो इस वजह से ये सब काम बहुत ज्यादा हो जाते हैं। इसके साथ ही घर का ध्यान, बगीचों की रखवाली और पशुओं का ध्यान भी रखना होता है।
सेब का बगीचा |
इतना सारा काम असोज के महीने के आसपास निपटाया जाता है और यही वजह है कि असोज के महीना इतनी चर्चा में रहता है। काफी पहाड़ी लोग मजाक में एक दूसरे को यह कहते हैं कि असली पहाड़ी वही है जो आसोज का महीना पहाड़ों में बिताये और ये सभी काम करे।
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Bahut achha se samjhaya hai sar aapne